'मंच, माला, माइक... सबकी अपनी जुबां', कौन होगा अतिथि, किसे मिलेगी गद्दी पर जगह?
लोकसभा चुनाव में बूथ की अंतिम चौकी पर संघर्ष से पहले महासमर के मैदान में रैलियों के जो मंच सज रहे हैं उनकी नींव में मनोविज्ञान भी है। भाजपा हो कांग्रेस हो या कोई भी बड़ा दल रैली के संयोजन की तैयारियों का सबका तरीका लगभग एक जैसा है। मसलन ऐसे स्थान पर बड़े नेताओं की रैली को प्राथमिकता पर चुना जाता है जहां से बड़ा संदेश दिया जा सके। भीड़ से खचाखच मैदान और मंच पर बड़े-बड़े नेताओं का जुटान...। सतही तौर पर राजनीति को देखने वालों के लिए यह किसी भी चुनावी रैली की सफलता का पैमाना हो सकता है, लेकिन उनके लिए कतई नहीं, जो चुनावी रणनीतिकार और मतदाताओं की नब्ज के जानकार हैं। यही वजह है कि जब भी कहीं किसी बड़े नेता की रैली कराई जाती है तो उससे पहले संगठन का ‘होमवर्क’ चलता है। लोकसभा चुनाव में बूथ की अंतिम चौकी पर संघर्ष से पहले महासमर के मैदान में रैलियों के जो मंच सज रहे हैं, उनकी नींव में मनोविज्ञान भी है। भाजपा हो, कांग्रेस हो या कोई भी बड़ा दल, रैली के संयोजन की तैयारियों का सबका तरीका लगभग एक जैसा है। मसलन, ऐसे स्थान पर बड़े नेताओं की रैली को प्राथमिकता पर चुना जाता है, जहां से बड़ा संदेश दिया जा सके और वह कई निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा से जुड़ता हो।
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