17 विदेशी नागरिकों को उनके देश वापस भेजें -सुप्रीम कोर्ट
पूर्वोत्तर भारत का एक छोटा सा राज्य असम आज पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. राजनीतिक प्रतिक्रियाओं के शोर में वोटबैंक की दुर्गन्ध का एहसास किया जा सकता है. दरअसल आज असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का अंतिम मसौदा पेश किया गया है जिसमें 40 लाख लोगों का नाम इसमें शामिल नहीं है और उनकी भारतीय नागरिकता फिलहाल सवालों के घेरे में है. इस रिपोर्ट के जारी होने के तुरंत बाद बांग्लादेशी घुसपैठियों से सहानुभति रखने वाले नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता का राष्ट्र गान प्रारंभ कर दिया है. चुनावों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का वोट बटोरने वाली पार्टियां इनके खुले समर्थन में हैं और केंद्र की मोदी सरकार के ऊपर मुस्लिम विरोधी होने का अपना पुराना राग छेड़ रहीं हैं.
1971 में पाकिस्तान की सेना पूर्वी पाकिस्तान में उठ रहे अलग बांग्लादेश की मांग को कुचलने के लिए बड़े पैमाने पर कत्लेआम शुरू करती है. जिसमें 30 लाख बंगालियों की निर्मम हत्या और 3 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है. पाकिस्तानी सेना के पागलपन से बचने के लिए बड़ी संख्या में बंगाली भाषा बोलने वाले लोग भारत में शरण लेते हैं. एक अनुमान के मुताबिक उनकी संख्या 1 करोड़ के आसपास होती है. उस दौर में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की आलोचना के बावजूद देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने इन्हें शरणार्थी के रूप में जगह दिया. लेकिन बांग्लादेश की स्थापना के बाद भी इन शरणार्थियों ने भारत में ही डेरा जमाये रखा और कुछ वर्षों के बाद देश की राष्ट्रीय अखंडता के लिए चुनौती के रूप में उभरने लगे.
कब-कब बने चुनौती
2012 में असम के कोकराझार में वहां के स्थानीय बोडो आदिवासी और बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के बीच जबरदस्त सांप्रदायिक झड़प के कारण 77 लोगों की मौत हो जाती है. इस घटना के बाद से ही असम में घुसपैठियों के प्रति अविश्वास का माहौल तैयार होता है और इस मुद्दे का बहुत तेज़ी से राजनीतिकरण होता है. इसी साल रोहिंग्या मुसलमानों और कोकराझार के दंगों में मरने वाले मुसलमानों को लेकर मुंबई के आज़ाद मैदान में बांग्लादेशी मुसलमानों के द्वारा एक रैली का आयोजन किया जाता है जिसमें मुसलमानों की हिंसक भीड़ पुलिस कर्मचारियों को दौड़ा- दौड़ा कर मारती है. महिला सिपाहियों के साथ बदसलूकी की जाती है और करोड़ों रुपये की सरकारी सम्पति को नुकसान पहुँचाया जाता है. इस बीच बंगाल और असम में कई बांग्लादेशी घुसपैठियों के तार प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन 'हूजी' से जुड़े होने के मामले सामने आते हैं. इस्लामिक स्टेट ने भी भारत में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए घुसपैठियों को अपने एजेंडे में शामिल होने का न्योता दिया था.
हिन्दुस्तान सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं. पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया. तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया. उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर जिहादी दीदी का तमगा लेकर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं.
हाल के दिनों में बंगाल के कई इलाकों में हिन्दुओं के ऊपर होने वाले सांप्रदायिक हमलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का ही हांथ रहा है. 2014 में पश्चिम बंगाल के सीरमपुर में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि चुनाव के नतीजे आने के साथ ही बांग्लादेशी ‘घुसपैठियों’ को बोरिया-बिस्तर समेट लेना चाहिए. 2016 में असम में भाजपा की सरकार आने के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अपडेट किया जा रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार हिंदुत्व के मोर्चे पर किये गए अपने वादों का संज्ञान लेना चाहती है.
1991 में असम में मुस्लिम जनसंख्या 28.42% थी जो 2001 के जनगणना के अनुसार बढ़ कर 30.92% प्रतिशत हो गई और 2011 की जनगणना में यह बढ़कर 35% को पार कर गयी. बांग्लादेशी मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी ने देश के कई राज्यों में जनसंख्या असंतुलन को बढ़ाने का काम किया है जिसके कारण देश में कई अप्रिय घटनाएं घटित हुई हैं. इसलिए इस समस्या का तुरंत निष्पादन जरूरी है.
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