थाली में क्यों नहीं रखते हैं 3 रोटियां

 

थाली में क्यों नहीं रखते हैं 3 रोटियां

थाली में क्यों नहीं रखते हैं 3 रोटियां


भोजन की थाली में तीन रोटी 👉 हिन्दू धर्म के साथ ही ज्योतिष और वास्तु शास्त्र की मान्यता के अनुसार भोजन करने के कुछ नियम है। उन नियमों को हम फॉलो नहीं करते हैं तो परेशानी में पड़ते हैं। कई नियमों में एक नियम यह भी है कि भोजन की थाली भोजन परोसते वक्त एक साथ 3 रोटियां नहीं रखते हैं। कहते हैं कि तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा। और भी कई बातें हैं। आओ जानते हैं विस्तार से इस संबंध में।

 

1. तीन एक विषम 👉 थाली में कभी भी तीन रोटी, पराठे या पूड़ी नहीं परोसी जाती है। इसके पीछे पहली मान्यता यह है कि तीन एक विषम संख्‍या है जो अच्छी नहीं मानी जाती

 

2. तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा 👉 दूसरी मान्यता यह है कि एक कहावत है- तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा। इसीलिए भी तीन रोटी नहीं परोसी जाती है। जहां पर भी तीन होते हैं वहां पर त्रिकोणी संघर्ष की बात भी कही गई है।

 

3. मृतक को लगाते हैं तीन कोल 👉 तीसरी मान्यता यह है कि यदि किसी मृतक को भोग लगा रहे हैं तो उसकी थाली में तीन कोल या तीन या पांच रोटी रखी जाती है। थाली में 3 रोटी तब रखी जाती है जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उसके त्रयोदशी संस्कार से पहले उसके नाम की थाली लगाई जाती है, उस दौरान 3 रोटियां रखी जाती हैं। इसमें पहली कोई अग्नि और देव के लिए दूसरा अर्यमा और पितरों के लिए और तीसरा गाय, कुत्ते और कौवे के लिए। इसीलिए भी थाली में नहीं रखते हैं।


4. तीन ग्रास 👉 प्राचीनकाल से ही प्रचलित है कि जब भी भोजन करने बैठें तो पहला ग्रास गाय के लिए, दूसरा कुत्ते के लिए और तीसरा कौवे के लिए निकाल कर अलग रखने के बाद ही भोजन करना चाहिए, क्योंकि भोजन पर अग्नि के बाद इन्हीं का सबसे पहले हक होता है। कुछ विद्वान कहते हैं कि भोजन के पूर्व ब्रह्मा, विष्णु और महेष के लिए तीन ग्रास निकालकर अलग रखना चाहिए।

 

5. शरीर चाहता मात्र दो रोटी 👉  यह भी कहा जाता है कि शरीर को मात्र दो रोटी की ही आवश्‍यकता होती है। इससे वजन कंट्रोल में रहता है। इसीलिए एक कटोरी दाल, 50 ग्राम चावल, 2 रोटी और एक कटोरी सब्जी पर्याप्त भोजन माना जाता है।

 

6. अंधविश्‍वास या मान्यता 👉 इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति थाली में एक साथ 3 रोटी रखकर खाता है तो उसके मन में दूसरों के प्रति शत्रुता का भाव उत्पन्न हो जाता है। कई लोगों का मानना है कि यह एक मान्यता भर है जो कि अंधविश्‍वास से जुड़ा मामला है।

साभारः आचार्य श्री दिनेश नारायण पाण्डेय जी

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