भगवद्गीता

 

भगवद्गीता

भगवद्गीता


यदि तुम भक्ति योग के नियमों का पालन नहीं कर सकते, तो केवल मेरे लिए कर्म करने का प्रयास करो, क्योंकि मेरे लिए कर्म करने से तुम पूर्ण अवस्था को प्राप्त हो जाओगे।


किन्तु यदि तुम मेरी इस चेतना में रहकर कर्म करने में असमर्थ हो, तो अपने कर्म के समस्त फलों का परित्याग करके कर्म करने का प्रयास करो और आत्मस्थित होने का प्रयास करो।


यदि तुम इस अभ्यास को नहीं अपना सकते, तो ज्ञान के अनुशीलन में लग जाओ। किन्तु ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान है, और ध्यान से भी श्रेष्ठ कर्म फलों का त्याग है, क्योंकि ऐसे त्याग से मन की शांति प्राप्त होती है।


भगवान ने कहा: जो लोग मेरे साकार रूप पर अपना मन लगाते हैं और सदैव महान तथा दिव्य श्रद्धा के साथ मेरी पूजा में लगे रहते हैं, उन्हें मैं सबसे उत्तम मानता हूँ।


जो ईर्ष्या नहीं करता, बल्कि सभी जीवों का दयालु मित्र है, जो अपने को स्वामी नहीं मानता और मिथ्या अहंकार से मुक्त है,जो सुख-दुःख में सम रहता है,जो सहनशील है, सदैव संतुष्ट रहता है, आत्म-संयमित है,दृढ़ निश्चय के साथ भक्ति में लगा रहता है,जिसका मन और बुद्धि मुझमें स्थिर है - ऐसा मेरा भक्त मुझे बहुत प्रिय है।


जो किसी को कष्ट में नहीं डालता,जो किसी के द्वारा विचलित नहीं होता,जो सुख-दुख,भय-चिंता में समभाव रहता है,वह मुझे बहुत प्रिय है।


जो मेरा भक्त सामान्य कर्मों पर आश्रित नहीं है,जो शुद्ध है,निपुण है,चिंता रहित है,सभी कष्टों से मुक्त है,तथा किसी फल की इच्छा नहीं करता,वह मुझे बहुत प्रिय है..!!

 नोट:::

शरीर परमात्मा के रहने का घर(मंदिर) है।संसार का सारा कार्य परमात्मा के द्वार सम्पन्न होता है।केवल इतना मान कर चलते रहने से गीता का संपूर्ण भाव अंदर उतर जाता है।क्योंकि यह शरीर स्वयं परमात्मा के द्वारा संचालित होता है।जैसे पंखा, कूलर बल्ब तब तक चलता है जब तक स्विच ऑन रहता है जैसे स्विच ऑफ होता है वैसे पंखा, कूलर और बल्ब सब बन्द हो जाता है।ठीक उसी प्रकार से हमारे शरीर का सारा अंग तभी तक कार्य कर रहा है जब तक इसमें परमात्मा हैं और परमात्मा के निकलते ही शरीर का सारा अंग आंख,कान, नाक,मुख,हार्ड, किडनी, लांस, आंत,लीवर,हाथ और पांव इत्यादि हिलना, डुलना और चलना सब बन्द हो जाता है।इसलिए यह विचार चौबीसों घण्टे बने रहने से जीवन में किसी तरह का कोई भ्रम नहीं रहता है और परमात्मा से सीधा संबंध बना रहता है।जब हम लोगों का अपना शरीर ही नहीं है फिर कैसे हम लोग गलत और सही उपयोग कर रहे हैं।लेकिन इस पर दृढ़ विश्वास होना चाहिए। 

जय श्री कृष्ण

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