नौतपा क्या होता है, सूर्य, चंद्रमा और शनि का प्रभाव
आज सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया में नौतपा पर खूब समाचार सुनने और पढ़ने को मिल रहे हैं कि आगामी 9 दिनों में भीषण गर्मी पड़ेगी। लेकिन इस के पीछे के रहस्य और प्रभाव न तो सुनने को मिले हैं और न ही किसी महानुभाव ने कुछ विस्तृत परिणाम नहीं लिखे। नौतपा में केवल सूर्य का विश्लेषण करना आधी अधूरी जानकारी परोसना है। इस में चंद्रमा और शनि का भी प्रभाव देखा जाता है जब शनि वृषभ राशि में प्रविष्ट हो जाते हैं।
सूर्य, चंद्रमा और शनि का प्रभाव
हमारा वैदिक ज्ञान नियमन पूर्ण रूपेण से वैज्ञानिक है। मेदिनी ज्योतिष सिद्धांतों के अनुसार सूर्य से ऊर्जा ताप चंद्रमा से वर्षा और शनि से विनाश का आंकलन किया जाता है। वीर विक्रमादित्य के समय के खगोल शास्त्री ऋषि वैज्ञानिक पंडित वाराहमीर जी ने 498 ईo में यह सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। इसलिए केवल सूर्य या चंद्रमा से तो त्रिमासिक नौतपा का आंकलन होता है लेकिन जब शनि को इसमें जोड़ते हैं तो इससे आगामी काल खंड के दूरगामी परिणामों का विश्लेषण हो जाता है जैसे की आजकल शनि कुंभ राशि में संचार कर रहे हैं और 2029 ईo में यह वृषभ राशि में आएंगे आगामी 10 वर्षों की जानकारी का भी दृष्टांतों के साथ अध्ययन करेंगे तो हमें पूर्ण विषयक जानकारी मिलेगी अन्यथा समाचार पत्रों में नौतपा पर केवल हेडलाइंस ही पढ़ने को मिलेंगी । हम हर माह संक्रांति पर उसके मुहूर्त वर्ण और वाहन से उक्त माह में घटित होने वाली घटनाओं का चिंतन करते हैं तो होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन के समय वायु की दिशा से वर्ष भर कृषि उत्पाद का आंकलन, इसी तरह ही प्रत्येक नवरात्र में त्रैमासिक भविष्यिक स्थिति का संज्ञान लेते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक ज्येष्ठ माह भावी वर्ष की वर्षा की स्थिति का आंकलन और सटीक जानकारी नौतपा से प्राप्त करते हैं, जब सूर्य भगवान रोहिणी नक्षत्र में प्रविष्ट होते हैं, इस वर्ष सूर्य देव 25 मई को प्रातः 3/16 बजे रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। नौतपा का वैदिक विज्ञान यह है कि इन 9 दिनों में सूर्य भगवान और पृथिवी दोनों परस्पर बहुत निकट होते हैं। जैसे जैसे 9 दिन की यात्रा आगे बढ़ती है तो भयंकर और प्रचंड गर्मी पड़ती है। सूर्य के ताप से पृथिवी पर जल सूखने लगता है और यही जल वर्षा ऋतु में मानसून के रूप में बरसता है। जिन क्षेत्रों से रोहिणी से मृगशिरा की यात्रा में बादल गर्जना के साथ वर्षा हो जाती है तो उन क्षेत्रों में मानसून कमजोर रहता है। सूर्य और चंद्रमा से त्रिमासिक वर्षा की स्थिति ज्ञात होगी। यदि इन नौ दिनों में पश्चिमी विक्षोभ से तो वर्षा में विषमता होना तय होता है और यदि इस काल खंड में पूर्णिमा तिथि का आगमन हो जाए तो चौमासे में सूखा पड़ने की प्रबल संभावना रहती है क्योंकि यह नियम है कि यदि इन 9 दिनों में जिन क्षेत्रों में वर्षा होगी उन क्षेत्रों में वर्षा ऋतु में वर्षा कम होगी।
नौतपा और उसके भविष्यफल की विस्तृत जानकारी में यदि शनि वृषभ राशि के रोहिणी नक्षत्र के चतुर्थ पद में प्रवेश करते हैं तो विश्व में विनाश की स्थितियां बनती हैं। इस समय संवत्सर क्रम में रुद्र बीसी चल रही है। 22 मई 2029 से 30 मई 2032 तक जब शनि वृष राशि में अढाई वर्ष यह रहेंगे तो तब रुद्रबीसी के विनाश कालखंड का अंतिम समय होगा।
पद्मपुराण के उत्तराखंड में एक संवाद में भगवान शिव देवर्षि नारद जी को शनि की भूमिका के बारे में बतला रहे हैं कि जब शनि रोहिणी नक्षत्र के चतुर्थ चरण में प्रविष्ट होगा तो सब कुछ नष्ट हो जायेगा। यह घटनाक्रम जैसे ही महाराज दशरथ को ज्ञात हुआ तो वह अपना धनुष बाण उठा कर शनि से युद्ध करने के लिए अंतरिक्ष यात्रा में प्रवेश कर गए और शनि की कक्षा में जा पहुंचे और शनिदेव से प्रार्थना की कि वह रोहिणी नक्षत्र के चतुर्थ चरण में प्रवेश न करें। महाराज दशरथ ने शनिदेव से प्रार्थना की कि विश्व को युद्ध और दुर्भिक्ष से बचाएं। आधुनिक खगोलीय तथ्य भी यही बताते हैं कि शनि जब रोहिणी नक्षत्र के वृत के समीप से गुजरेंगे तो कुछ न कुछ गलत घटनाएं अवश्य घटित होंगी।
दृष्टांत ...
*जब शनि 12 मई 1912 को वृषभ राशि में प्रविष्ट हुए थे तो अढाई वर्षों में 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध हुआ था।
*भारत में राष्ट्रवाद का उदय 1913 ईo में हुआ था जब महात्मा गांधी जी ने 1913 में दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया था।
*पुनः 30 वर्षों के बाद 4 मार्च 1942 से 24 अप्रैल तक जब शनि वृषभ राशि में थे तो द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ और गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ किया जिसमें असंख्य लोग मारे गए थे।
*29 अप्रैल 1971 में जब शनि वृष राशि में आए तो भारत पाक युद्ध हुआ और श्रीमति इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के 2 टुकड़े कर बांग्लादेश बनवा दिया था।
*6 जून 2000 से 22 जुलाई 2002 के काल खंड में अमरीका पर उग्रवाद का हमला हुआ था और भारत की संसद पर हमला हुआ था और गुजरात में भयंकर भूकंप आया था।
अब 22 मई 2029 से 30 मई 2032 में शनि पुनः वृषभ राशि में संचार करेंगे। शनि धर्म का संतुलन बनाए रखने के लिए कटिबद्ध हैं। जनकल्याण के कार्य करें, नैतिकता का परिचय दें, नियम, कानून और संविधान का पालन करें अन्यथा भगवान शिव ने शनि को ईश्वर की उपाधि दे ही रखी है। वह धर्म संतुलन स्थापित कर ही लेंगें। वर्तमान रुद्रबीसी 2011 से प्रारंभ हुई थी तत्कालीन कांग्रेस सरकार का धर्म पर न चलने से क्या हश्र हुआ यह तो हम सभी जानते ही हैं। यह नौतपा घटना क्रम केवल सूर्य पर आधारित नहीं है इसमें शनि ग्रह की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। यदि हम 2011 से प्रारंभ हुई रुद्राबीसी का अध्ययन करें तो 2031 तक न केवल भारत अपितु समूचे विश्व में राजनैतिक आर्थिक और प्राकृतिक स्थितियां बुरी तरह से बदली हैं। आर्थिक समस्याएं तो हम झेल ही रहे हैं, करना आदि और राजनैतिक सिद्धांतहीनता किसी से छिपी हुई नहीं है , यह घटनाक्रम ऐसा जारी रहना तो तय है और इसके परिणाम 2011 से भी भयंकर होने वाले हैं।
साभारः आचार्य श्री दिनेश नारायण पाण्डेय जी
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