दो बोल मीठा बोलने से किसी का खून बढ़ जाए...
तो वो भी एक प्रकार से रक्तदान ही है।
मीठे बोल बोलने से खून बढ़ जाता है यह १००% सत्य है लेकिन मीठे बोल तब निकलता है जब शरीर का अभिमान शून्य हो जाता है।इसके लिए तप करना पड़ता है वह भी तप परमात्मा की कृपा से होता है।परमात्मा कृपा कर संत के रूप में प्रकट हो कर सत्संग के माध्यम से नाम जप करने के लिए प्रेरणा भरते हैं और प्रेरणा से प्रेरित मन को परमात्मा के पावन नाम के जप में रुचि मिलने लगता है, जिसके वजह से मन अंतर्मुखी हो जाता है उसके बाद बहिर्मुखि व्यक्ति का, वस्तु,व्यवस्था, व्यवहार,आचार, विचार भाव एवं भावना और वातावरण से संपर्क टूट जाता है।जिसके वजह से परमात्मा के प्रति सच्ची श्रद्धा और दृढ़ विश्वास होता है और किसी प्रकार की कोई इच्छाएं नहीं रहती है।जिसके वजह से संतोष रूपी खजाना मिल जाता है।और संतोष रूपी खजाना के प्राप्त होते ही सबमें परमात्मा का दर्शन होने लगता है।और जिसको सब में परमात्मा का दर्शन होने लगता है उनके अंदर से कभी भी किसी के लिए कड़वे बोल निकल ही नहीं सकता है।वह कड़वे बोल बोलने का हर संभव प्रयास भी करते हैं फिर भी कड़वे बोल बोल ही नहीं सकते हैं।क्योंकि अपने ही परमात्मा को कड़वे बोल कैसे बोल सकते हैं और इनके बोल से ही खून बढ़ जाता है क्योंकि जो शब्द वह बोलते हैं, उस शब्द से,शांति और शीतलता मिलती है। जिसके वजह से नींद में किसी प्रकार की कोई असुविधा नहीं आती है भरपूर स्वस्थ नींद आने के बाद कोई रोग नहीं होता है, और उससे खून भी बढ़ता है।राम राम
---आचार्य श्री परम् श्रद्धेय दिनेश नारायण पाण्डेय
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