आखिर ममता ने मोदी को क्या धमकी दी

 

आखिर ममता ने मोदी को क्या धमकी दी

आखिर ममता ने क्यों दी देश में आग लगाने की धमकी

बुधवार को ममता बनर्जी की भाषा में एक डरे हुए नेता का प्रतिबिंब नजर आ रहा था. 'मोदी बाबू, आप चाहते हैं कि वह आग बंगाल में फैले, तो फिर आपको ये समझ लेना चाहिए कि अगर आग बंगाल में लगेगी तो असम नहीं बचेगा, बिहार नहीं बचेगा, मणिपुर या ओडिशा में नहीं रुकेगी. यह आग दिल्ली भी पहुंचेगी.'

पश्चिम बंगाल की मुख्मंत्री ममता बनर्जी का नाम देश के तेजतर्रार नेताओं में शुमार होता रहा है. अपनी इसी खूबी के बल पर उन्होंने पश्चिम बंगाल पर करीब 3 दशक से राज कर रहे वाम मोर्चा को नेस्तनाबूद कर दिया. फिलहाल पिछले 13 सालों से बंगाल में बिना किसी सहयोगी दल की मदद लिए अकेले राज कर रही हैं. भारतीय जनता पार्टी के मोदी-शाह युग का मुकाबला करने वाली वो इकलौती नेत्री हैं जो लगातार बीजेपी को विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में मात दे रहीं है.पर अब लगता है कि उनका आत्मविश्वास डोल रहा है. 

कोलकाता आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ जो हुआ वो उनकी सरकार के लिए ताबूत में आखिरी कील बनने वाला है. बुधवार को ममता बनर्जी की भाषा में एक डरे हुए नेता का प्रतिविंब नजर आ रहा था. कोलकाता में टीएमसी के छात्र परिषद (छात्र विंग) के स्थापना दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, ममता ने कहा, कुछ लोग सोच रहे हैं कि यह बांग्लादेश है. मुझे बांग्लादेश बहुत पसंद है, उनकी संस्कृति और खान-पान हमारे जैसा ही है. लेकिन बांग्लादेश एक अलग देश है और भारत एक अलग देश है. मोदी बाबू, आप चाहते हैं कि वह आग बंगाल में फैले, तो फिर आपको ये समझ लेना चाहिए कि अगर आग बंगाल में लगेगी तो असम नहीं बचेगा,, बिहार नहीं बचेगा, मणिपुर या ओडिशा में नहीं रुकेगी. यह आग दिल्ली भी पहुंचेगी.

ममता बनर्जी का इतना कहना था कि बंगाल के पड़ोसी राज्यों ने अपनी गहरी नाराजगी जतानी शुरू कर दी. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा, ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी और मणिपुर के मुख्यमंत्री एम बीरेंद्र सिंह आदि ने ममता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. दरअसल ममता बनर्जी एक संवैधानिक पोस्ट पर हैं , वो एक राज्य की मुख्यमंत्री हैं. पर उन्होंने जो आग लगाऊ बयान दिया वो एक छात्र नेता के स्तर से ऊपर का कतई नहीं माना जा सकता. उनका यह भाषण जाहिर करता है कि सीएम ममता बनर्जी आरजीकर मेडिकल कॉलेज की घटना के बाद किस तरह बैकफुट पर पहुंच गईं हैं. वैसे तो गुस्से में बहुत कुछ बोल जाया करती रही हैं पर इस तरह की अलोकतांत्रिक बात उन्होंने कभी नहीं की थीं. जाहिर है कि सवाल उठेंगे ही कि ममता क्यों बौखला गईं हैं. क्या इसके पीछे ये 4 कारण काम कर रहे हैं?


1- वो दबाव में हैं और घबरा गईं हैं

ममता बनर्जी ने अपने 13 साल के कार्यकाल में इस तरह कभी भी विपक्ष को कभी हॉवी होते हुए नहीं देखा था.पहली बार उन्हें ऐसा लग रहा है कि चीजें उनके नियंत्रण में नहीं हैं. कोलकाता रेप केस को ठीक से हैंडल न कर सकने का मलाल उनमें दिख रहा है. घटना के समय आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल संदीप घोष के साथ जिस तरह का ट्रीटमेंट उन्होंने किया वो उन्हें अंदर तक परेशान कर रहा होगा.पश्चिम बंगाल बंगाल पुलिस ने भी उनकी किरकिरी कराई पर वह असहाय बनी रहीं. यहां तक कि भतीजे अभिषेक बनर्जी की सलाह न मानने का मलाल भी उन्हें फ्रस्ट्रेट कर रहा होगा.

अभिषेक बनर्जी संदीप घोष को तुरंत बर्खास्तगी चाहते थे. अभिषेक ने पुलिस पर भी सवाल उठाए पर ममता बनर्जी अपने चापलूसों से इस तरह घिरी हुईं थीं कि उन्हें ऐसा लगता रहा है कि वो डॉक्टर रेप और मर्डर केस को भी उसी तरह समेट लेंगी जैसे संदेशखाली या चुनाव बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमले को उन्होंने अपने हिसाब से निपटा दिया था. यही कारण है कि ममता अब बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड सुनिश्चित करने के लिए विधानसभा से एक कानून लाने की कसम खा रहीं हैं. यही नहीं विरोध कर रहे डॉक्टरों से काम फिर से शुरू करने का आग्रह भी धमकी भरे अंदाज में करती हैं कि एक एफआईआर उनके करियर को बर्बाद कर देगा. इस तरह की बातों से पता चलता है कि ममता बुरी तरह घबराई हुईं हैं. उन्हें जो भी समझ में आ रहा है वह तुरंत करना चाहती हैं और जल्द से जल्द इस मामले को खत्म करना चाहती हैं.

2- राष्ट्रपति शासन लगने का संकेत 

राज्य में विपक्ष लगातार राष्ट्रपति शासन लगाने की वकालत कर रहा है. कांग्रेस से भी उन्हें कोई सहयोग नहीं मिल रहा है कांग्रेस नेता अधीर रंजन बुरी तरह टीएमसी और ममता बनर्जी के पीछे पड़े हुए हैं. अधीर हर रोज चुभने वाला बयान दे रहे हैं. कोलकाता रेप और बलात्कार मामले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी ऐसा बयान दिया है जिसका संकेत पश्चिम बंगाल सरकार के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है. राष्ट्रपति के लिखे एक ऑर्टिकल को केवल एक लाइन में समझा जा सकता है. उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि अब बहुत हो गया. वह इस पूरी घटना से निराश और भयभीत हैं. राष्ट्रपति मुर्मू ने ‘विमेंस सेफ्टी: एनफ इज एनफ’ नाम से एक आर्टिकल लिखा था, जिस पर उन्होंने मंगलवार (27 अगस्त) को PTI के एडिटर्स से चर्चा की.उन्होंने कहा कि कोई भी सभ्य समाज अपनी बेटियों और बहनों पर इस तरह के अत्याचारों की इजाजत नहीं दे सकता.जाहिर है कि इस चर्चा की गूंज ममता बनर्जी तक भी पहुंची होगी.  

3- पार्टी पर पकड़ कमजोर हो रही है

कोलकाता रेप और मर्डर केस के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि उनके खास लोगों ने उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत जाग गई है. जिस तरह ममता बनर्जी ने टीएमसी के लोगों की जुबान बंद कराने की कोशिश की है उससे उनके खिलाफ पार्टी में और भी अविश्वास बढ़ा है.टीएमसी के राज्यसभा सदस्य सदस्य सुखेंदु शेखर राय और पूर्व सांसद शांतनु सेन ने अपनी तल्ख टिप्पणियों को ममता ने जिस तरह रोकने की कोशिश की वह लोकतांत्रिक तरीका कतई नहीं हो सकता.सुखेंदु शेखर राय ने इस मुद्दे पर पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जा कर कोलकाता पुलिस और आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के कामकाज पर सवाल उठाया तो उन्हें पुलिस मुख्यालय में तलब कर लिया गया. रॉय को कोर्ट की शरण लेनी पड़ी कि कहीं उनकी गिरफ्तारी न हो जाए. यही हाल पार्टी के प्रवक्ता और शांतनु सेन ने भी इस मामले में बगावती तेवर दिखाए तो फौरन उनसे पार्टी प्रवक्ता पद छीन लिया गया.सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि पार्टी मुखपत्र के संपादक और राजनीत दल का रवैया परस्पर विरोधाभासी है.15 अगस्त को मुखपत्र 'जागो बांग्ला' के अंक में जहां महिलाओं की ओर से आधी रात को हुए आंदोलन और प्रदर्शन की निंदा की गई थी वहीं उसके संपादक निजी हैसियत से ख़ुद तीन घंटे तक धरने पर बैठे थे. 

डायमंड हार्बर के सांसद अभिषेक जो ममता बनर्जी के भतीजे और पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखते हैं ने जिस तरह कोलकाता रेप केस पर ममता सरकार के खिलाफ बयानबाजी की है, उससे साफ लगता है कि ममता को अपने घर में चुनौती मिल रही है. अभिषेक ने आरजी कर अस्पताल मामले पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में आरोपियों के मुठभेड़ की मांग की थी. यही नहीं इस मामले में ममता के विरोध मार्च में भी उनकी अनुपस्थिति भी लोगों को हैरान कर रही थी. 

4- बीजेपी ने इस बार ममता को बंगाली बनाम बाहरी करने का मौका नहीं दिया

भारतीय जनता पार्टी ने भी कोलकाता रेप हत्याकांड में पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने और ममता सरकार को घेरने की जो रणनीति अपनाई वह पिछले आंदोलनों से सबक ली हुई लगती है. संदेशखाली और विधानसभा चुनावों के बाद हुई हिंसा के विरोध में भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी शामिल हो जाता रहा है. इस बार पूरे परिदृश्य से गृहमंत्री अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी गायब हैं. सारा जोर शुभेंदु अधिकारी, सुकांत मजूमदार, लॉकेट चटर्जी और राज्यपाल बोस ने संभाली हुई है. भारतीय जनता पार्टी ने यह समझ लिया है कि बंगाली भद्रजन के लिए बंगाली नेतृत्व को.ही आगे रखने की जरूरत है. इसके चलते ममता बनर्जी अब मां-माटी-मानूष की बात कहकर बीजेपी को बाहर के लोगों की पार्टी बताने का मौका भी नहीं मिल रहा है.

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