माबाईल से होने वाले खतरों से सावधान-डाक्टर, कैंसर का खतरा नहीं-WHO

माबाईल से होने वाले खतरों से सावधान-डाक्टर,  कैंसर का खतरा नहीं-WHO
माबाईल से होने वाले खतरों से सावधान-डाक्टर,  कैंसर का खतरा नहीं-WHO

मोबाईल से कैंसर का खतरा नहीं- WHO

डाक्टरों की सलाह-अन्य खतरों से सावधान

WHO ने दूर किया डर, लेकिन क्या मोबाइल एकदम सुरक्षित है, पढ़िए डॉक्टर की सलाह


मोबाइल फोन को लेकर अक्सर इस तरह के डर और भ्रम फैलाए जाते हैं कि इसके इस्तेमाल से कैंसर हो जाता है। लेकिन क्या ये बात वैज्ञानिक रूप से सही है?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस पर एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिव्यू रिपोर्ट में मोबाइल फोन और कैंसर के संबंध को जानने के लिए पूरी दुनिया में हुई कई स्टडीज का रिव्यू किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक–

  • मोबाइल फोन चलाने से ब्रेन कैंसर नहीं होता है।
  • मोबाइल फोन के इस्तेमाल से सिर, गले या बॉडी में कहीं भी कोई कैंसर नहीं होता।
  • कैंसर का मोबाइल फोन से कोई डायरेक्ट कनेक्शन नहीं है।
  • अगर पहले से कैंसर या ट्यूमर है तो इस पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता है।

यह रिव्यू ऑस्ट्रेलियन रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड न्यूक्लियर सेफ्टी एजेंसी (ARPANSA) के नेतृत्व में किया गया। इसमें पूरी दुनिया की कुल 5,000 से अधिक स्टडीज को शामिल किया गया। इन्हें कई वैज्ञानिक पहलुओं पर आंका गया, छांटा गया और आखिर में साल 1994 से 2022 के बीच पब्लिश सिर्फ 63 सबसे सटीक स्टडीज को रिव्यू किया गया। इन सारी स्टडीज का डिटेल अध्ययन और रिव्यू करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि मोबाइल फोन चलाने से किसी तरह का कैंसर या ट्यूमर नहीं होता है।

यह रिव्यू इसलिए जरूरी था क्योंकि पूरी दुनिया में विज्ञान के हवाले से कई मिथ सच की तरह परोसे जा रहे हैं। इसमें एक बड़ा मिथ यह भी था कि मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियो वेव्स ब्रेन, सिर और गले के कैंसर की वजह बनती हैं।

यह तो निश्चित है कि मोबाइल फोन से कैंसर नहीं होता है, लेकिन क्या इसका मतलब ये है कि मोबाइल फोन चलाना एकदम सुरक्षित है? क्या इसे जितनी देर जी चाहे, चलाया जा सकता है? ऐसा बिल्कुल नहीं है। ज्यादा देर तक मोबाइल फोन चलाने के कई नुकसान होते हैं। इससे फोकस कम होता है। अटेंशन स्पैन कम हो जाता है। आंखों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।

इसलिए आज ‘सेहतनामा’ में जानेंगे कि मोबाइल फोन चलाने से किस तरह के नुकसान होते हैं। साथ ही जानेंगे कि-

  • मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल का स्वास्थ्य पर क्या असर होता है?
  • लोग बेसिक कीपैड फोन की तरफ क्यों लौट रहे हैं?
  • दुनिया में 70% लोग कर रहे स्मार्टफोन का इस्तेमाल       साल 1994 में दुनिया का पहला स्मार्टफोन बाजार में आया और महज कुछ सालों में ही ये लोगों के जीवन का सबसे अहम हिस्सा बन गया। स्टेटिस्टा पर पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की लगभग 70% आबादी स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रही है। इसके बिना लोग खुद को असहाय महसूस करते हैं। मोबाइल फोन का इस्तेमाल हर उम्र के लोगों में काफी तेजी से बढ़ रहा है। नतीजन इसके दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं। नीचे दिए गए ग्राफिक के जरिए मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से हाेने वाले नुकसान के बारे में जानें।

नींद प्रभावित होती है

अमेरिकन नेशनल स्लीप फाउंडेशन की एक स्टडी के मुताबिक, मोबाइल फोन या दूसरे गैजेट्स इस्तेमाल करने से नींद प्रभावित होती है। देर रात तक मोबाइल फोन और लैपटॉप से निकलने वाली लाइट की मौजूदगी में हमारा शरीर नींद के लिए जरूरी हॉर्मोन मेलाटोनिन रिलीज नहीं कर पाता या इसकी मात्रा जरूरत से कम होती है। ऐसे में अगर नींद आती भी है तो उतनी गहरी नहीं होती है।

इसके चलते कॉग्निटिव फंक्शन खराब होता है, इम्यूनिटी कमजोर होती है और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ता है।

आंखों पर जोर पड़ता है

ज्यादा देर तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने से आंखों में तनाव बढ़ सकता है। मोबाइल फोन के छोटे अक्षर और ब्राइट स्क्रीन आंखों को अधिक मेहनत करने के लिए मजबूर करते हैं। इससे ड्राई आइज, ब्लर विजन और सिरदर्द की समस्या हो सकती है। इससे आंखों की रोशनी प्रभावित हो सकती है।

स्ट्रेस लेवल बढ़ता है

मोबाइल फोन की स्क्रीन को लगातार देखने से स्ट्रेस लेवल बढ़ सकता है। इससे एंग्जाइटी बढ़ सकती है। साथ ही आंखों और गर्दन की मसल्स में तनाव बढ़ सकता है।

लत और डिपेंडेसी बढ़ती है

लोग मोबाइल फोन के लती हो रहे हैं। कुछ लोग टॉयलेट में भी मोबाइल फोन साथ लेकर जाते हैं। इसके लिए नया शब्द ‘नोमोफोबिया’ है। इसका मतलब है कि मोबाइल फोन के बिना घबराहट होना। इसके अलावा लोग हर एक छोटे-बड़े काम के लिए मोबाइल फोन पर निर्भर होते जा रहे हैं। इससे मेहनत करने की आदत खत्म हो रही है।

अटेंशन स्पैन घट रहा है

मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल के कारण लोगों का अटेंशन स्पैन कम होता जा रहा है। इसका मतलब है कि कोई बिना ध्यान भटके किसी काम में लगातार कितनी देर तक अपना ध्यान लगा सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया इरविन की एक स्टडी के मुताबिक इंसानों का औसत अटेंशन स्पैन बीते 20 सालों में 2.5 मिनट से घटकर 47 सेकेंड तक पहुंच गया है।

फोकस कम हो रहा है

स्मार्टफोन में एक प्रकार से पूरी दुनिया कैद है। इसमें लोग हर मिनट में एक ऐप से दूसरे ऐप में भटकते रहते हैं। हर 30 सेकेंड में रील्स स्क्रॉल करते रहते हैं। इसका असर ये हुआ है कि लोगों की एकाग्रता खत्म हो रही है।

धैर्य की क्षमता घट रही है

मौजूदा वक्त में मोबाइल फोन किसी जादू से कम नहीं हैं। पहले किसी शब्द का माने न पता होने पर लोग डिक्शनरी लेकर देर तक उलझे रहते थे। मनपसंद गाना चलाने के लिए पहले कैसेट खोजते थे, फिर टेप रिकॉर्डर को रिवाइंड करके उसे चालू करते थे। अगर कैसेट घर पर हो तब भी इसमें कम-से-कम 5 मिनट तो खर्च हो ही जाते थे। अब यह सबकुछ कुछ सेकेंड्स में हो जाता है। इसके परिणाम स्वरूप लोगों में धैर्य की क्षमता खत्म हो रही है।

बच्चों का विकास प्रभावित हो रहा है

विशेष तौर पर मोबाइल फोन के इस्तेमाल का छोटे बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। बच्चे संवेदनशील होते हैं। ज्यादा स्क्रीन टाइम उनके कॉग्निटिव और इमोशनल डेवलपमेंट में बाधा बन रहा है। इससे अटेंशन स्पैन की समस्या, लैंग्वेज स्किल्स में देरी और बिहेवियर से जुड़ी समस्याएं हो रही हैं। बच्चे बाहर मैदान में खेलने की बजाय स्मार्टफोन में गेम खेल रहे हैं या मनोरंजन के लिए वीडियो देख रहे हैं। इससे उनकी फिजिकल ग्रोथ पर भी असर पड़ रहा है।

भारत में औसतन एक शख्स इस्तेमाल कर रहा 4 घंटे फोन

इंटरनेशनल डिजिटल डेटा फर्म ‘डेटा रिपोर्टल’ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एक व्यक्ति एवरेज 4 घंटे 3 मिनट मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहा है। इस मामले में पूरी दुनिया का औसत समय 3 घंटे 15 मिनट है। भारतीय इससे लगभग 50 मिनट अधिक फोन इस्तेमाल कर रहे हैं। जापान के लोग पूरे दिन में औसतन 2 घंटे से भी कम देर फोन चलाते हैं।

बेसिक फोन की तरफ लौट रहे हैं लोग

कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स सेल के डेटा के मुताबिक, बीते कुछ सालों से स्मार्टफोन की बिक्री में गिरावट देखने को मिल रही है। यह गिरावट आगे और बढ़ने की उम्मीद है। इसकी एक वजह ये भी है कि नई जनरेशन ने फिर से बेसिक फोन खरीदना शुरू कर दिया है। दुनिया के कई वैज्ञानिक भी इस ओर पहले भी इशारा कर चुके हैं कि अगर लोग अपना दिमाग इस्तेमाल करने की बजाय फोन पर आश्रित होते जाएंगे तो इवॉल्यूशन में दिमाग की फंक्शनिंग कमजोर और सीमित होने लगेगी। हमें यह समझने की जरूरत है कि इंसानी दिमाग स्मार्टफोन से कहीं ज्यादा तेज और शक्तिशाली है।





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