जानिए क्या है महिमा कानपुर के इन प्रसिद्ध मन्दिरों की

जानिए क्या है महिमा कानपुर के इन प्रसिद्ध मन्दिरों की

जानिए क्या है महिमा कानपुर के इन प्रसिद्ध मन्दिरों की

जानिए, कानपुर स्थित  मॉ तपेश्वरी देवी, मॉ बारह देवी, मॉ जंगली देवी की महिमा

मॉ तपेश्वरी देवी मन्दिर

मां तपेश्वरी मंदिर में कानपुर और आसपास के क्षेत्रों के लोगों की अटूट श्रद्धा है, मंदिर के बारे में लोग कहते हैं कि, मां सीता पर अयोध्या में उठ रहे सवालों के बाद जब भगवान श्रीराम ने मां का त्याग किया था तो वह काफी दिनों तक मां बिठूर के आश्रम में रहीं थीं. जहां लव और कुश का जन्म हुआ .उसके बाद मां सीता ने लव-कुश का मुंडन संस्कार यहीं पर कराया था.

त्रेता युग से जुड़ा मंदिर का इतिहास

सैकड़ों साल पुराने इस ऐतिहासिक मां तपेश्वरी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि त्रेता युग में मां तपेश्वरी देवी प्रकट हुईं थीं. इस मंदिर की मान्यता मां के शक्तिपीठों से है. मान्यता ये भी है कि यहां पर मां के सामने शीश झुकाने और अखंड ज्योत जलाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. नवरात्रि के मौके पर मां तपेश्वरी मंदिर की गलियों में मां के जयकारों की गूंज के साथ भक्तों की असीम आस्था दिखाई पड़ती है. इस दौरान मंदिर में बहुतायत मात्रा में लोग मुंडन संस्कार कराते हुए भी नजर आते हैं. कानपुर के बिरहाना रोड स्थित पटकापुर की तंग गलियों में मां के मंदिर की अनूठी छटा देखने को मिलती है.

वहां कभी गंगा की धारा बहती थी और घना जंगल हुआ करता था। मां तपेश्वरी के दर्शन से कष्टों का निवारण होता है।मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी भक्त यहां अखंड ज्योति जलाते हैं भगवती उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करती हैं। यहां लखनऊ, रायबरेली, फर्रुखाबाद आदि जिलों से आकर मां के दर्शन करते हैं और मां के दरबार में अखंड ज्योति जलाते हैं। बच्चों का यहां मुंडन भी होता है। मां के 108 नामों का जप नवरात्र में करना चाहिए। मां के नामों का जप करने से पद, प्रतिष्ठा और ऐश्वर्य की कामना पूरी होती है। 

माता सीता ने यहीं कराया था लव-कुश का मुंडन संस्कार!

मां तपेश्वरी मंदिर का इतिहास  जब लंका पर विजय के बाद भगवान राम अयोध्या पहुंचे तो धोबी के ताना मारने पर मां सीता को उन्होंने त्याग दिया था। लक्ष्मण जी जानकी जी को लेकर ब्रह्मावर्त स्थित वाल्मीकि आश्रम के पास छोड़ गए थे। आज जहां तपेश्वरी माता मंदिर स्थित है तब वहां घना जंगल था और मां गंगा वहीं से बहती थीं। सीता जी ने तब यहां पुत्र की कामना के लिए तप किया था। भगवती सीता के तप से ही तपेश्वरी माता का प्राकट्य हुआ था। लव कुश के जन्म के बाद सीता जी ने मां के समक्ष ही दोनों पुत्रों का मुंडन कराया था।

मंदिर जाने का रास्ता सेंट्रल स्टेशन से घंटाघर, नयागंज होते हुए बिरहाना रोड। घंटाघर से एक्सप्रेस रोड, मालरोड, बिरहाना रोड पहुंचा जा सकता है। रावतपुर से बड़ा चौराहा, मालरोड होते हुए भी मंदिर पहुंच सकते हैं। मंदिर के पुजारी शिवमंगल बताते हैं कि मां सब पर कृपा करती हैं। मां तपेश्वरी के दर्शन पूजन से समस्त कष्टों का निवारण होता है। इस लिए मां के दर्शन को दूर दराज से लोग आते हैं।

मॉ बारह देवी मन्दिर

कानुपर दक्षिण में प्रसिद्ध बारा देवी माता का मंदिर स्थित है। पूरे साल यहां लोगों का जमघट लगा रहता है। नवरात्रि में इस मंदिर में भारी भीड़ होती है। इस मंदिर का इतिहास लगभग 1700 साल पुराना बताया जाता है। मंदिर के पुजारी दीपक बताते हैं कि, पिता से हुई अनबन और उनके कोप से बचने के लिए घर से एक साथ 12 सगी बहनें घर से भाग गईं थीं। सारी बहनें कानपुर के किदवई नगर में स्वत: मूर्ति बनकर स्थापित हो गईं। कई सालों के बाद यही 12 बहनें बारादेवी नाम से प्रसिद्ध हो गईं।


नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो चुका है। देवी मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखनी को मिल रही है। कानपुर में भी कई चमत्कारिक और रहस्यमयी देवी मंदिर स्थित हैं। कानपुर के दक्षिण में स्थित बारा देवी का मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के इतिहास के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं दे पाता है। बता दें कि, कानपुर और उसके आस- पास के जिलों में रहने वाले लोगों की इस मंदिर में गहरी आस्था जुड़ी हुई है।

बता दें कि नवरात्रि के दिनों में हजारों की संख्या में रोज भक्त माता के दर्शन करने के लिए आते रहते हैं। माता बारा देवी के दरबार में भक्त लाल चुनरी बांधते हैं और मन्नत पूरी हो जाने पर उसे खोल कर ले जाते हैं। इस मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्त माता को प्रसन्न करने के लिए बेहद खतरनाक तरीके से करतब भी दिखाते रहते हैं। कोई मुंह से आग के गोले निकालता हुआ दिखाई देगा तो कोई नुकीली धातु को गालों के आर-पार कर देने की कला दिखाता रहता है।

मंदिर का इतिहास सैकड़ों साल पुरानामिली जानकारी के अनुसार मंदिर के इतिहास के बारे में अब तक कोई भी पुख्ता जानकारी तो नहीं मिल सकी है। मंदिर के पुजारी और आसपास के लोगों का कहना है कि, एक बार एएसआई की टीम मंदिर के सर्वेक्षण के लिए आई हुई थी। उन्होंने मंदिर का सर्वेक्षण कर बताया कि, मूर्ति लगभग 15 से 17 सौ साल पुरानी है। बता दें कि बारा देवी मंदिर को यूपी के पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी है।

जानिए क्या है 12 बहनों की कहानी

मंदिर के पुजारी दीपक बताते हैं कि, पिता से हुई अनबन और उनके कोप से बचने के लिए घर से एक साथ 12 सगी बहनें घर से भाग गईं थीं। सारी बहनें कानपुर के किदवई नगर में स्वत: मूर्ति बनकर स्थापित हो गईं। कई सालों के बाद यही 12 बहनें बारादेवी नाम से प्रसिद्ध हो गईं। बताया जाता है कि, बहनों के श्राप देने की वजह से उनके पिता भी पत्थर के रूप में हो गए। इस मंदिर के आस-पास के इलाकों के नाम भी बारा देवी के नाम पर ही रख दिए गए हैं।

मॉ जंगली देवी मन्दिर   कानपुर में जंगली देवी मंदिर में इस वक्त भक्तों का तांता लगा हुआ है. वैसे तो पूरे साल यहां भक्त आते हैं पर नवरात्र में यहां का महत्व और बढ़ जाता है. इससे मंदिर से जुड़ीं कई अनोखी मान्यताएं हैं. कहते हैं कि यहां पर जो भी भक्त ईंट रखकर मुराद मांगता है माता उसकी सारी मुरादें पूरी करती हैं. इतना ही नहीं ये भी कह जाता है कि मूर्ति के पीछे बनी नाली में ईट रखने के बाद उस ईट को निर्माणाधीन मकान में लगाने से तरक्की होती है और घर का काम जल्दी निपट जाता है.

इस मंदिर का बहुत ही प्राचीनतम इतिहास है, घने जंगल के बीचोबीच स्थित होने से ये स्थान जंगली देवी मंदिर के नाम से विख्यात हो गया. मंदिर में माता की मूर्ति के साथ भी एक मान्यता जुड़ी हुई है कहा जाता है कि जो भी भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता के चेहरे को निहारता है, उसको मनोकामना पूरी होने का संकेत मां की मूर्ति से ही मिल जाता है. मंदिर कमिटी के अध्यक्ष के मुताबिक माता जी प्रतिमा के सामने जो भक्त पूरी आस्था के साथ चेहरे को निहारता है तो प्रतिमा का रंग धीरे-धीरे गुलाबी होने लगता है तो समझो मनोकामना पूरी हो गई.

           किदवई नगर स्थित जंगली देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक है. लोगों का कहना है कि जिस स्थान पर जंगली देवी का मंदिर बना है, 838 ईसवी में वहां पर राजा भोज का राज था. राजा भोज ने बगाही क्षेत्र में एक विशाल मंदिर बनवाया था. लेकिन राजशाही समाप्त होने के बाद सब कुछ नष्ट हो गया. 17 मार्च सन 1925 में मोहम्मद बकर अपने घर के निर्माण के लिए खुदाई करा रहे थे उसी दौरान उनको एक ताम्रपत्र मिला था, जिस पर विक्रम संवत 893 अंकित था. ताम्रपत्र देखने के लिए पूरा गांव जमा हो गया था. बाद में मोहम्मद बकर ताम्र पत्र को पुरातत्व विभाग को सौप दिया था. 

     मंदिर के प्रबंधक डीपी बाजपाई के मुताबिक क्षेत्रीय लोगों के प्रयास से ताम्रपत्र को वापस लाया गया और एक तालाब के किनारे नीम के पेड़ के नीचे रख दिया गया और वहां एक छोटा सा मंदिर बना दिया गया. मंदिर के पास लोग जाने में डरते थे क्योंकि मंदिर के पास बने तालाब में जंगली जानवर पानी पीते आते थे. समय के साथ धीरे-धीरे तालाब सूख गया और आबादी बढ़ने लगी, लोग यहां पर पूजा करने आने लगे. साधू संतों ने अपना डेरा जमा लिया. इसके बाद आपसी सहयोग से मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया.

      मंदिर की विशेषता बताते हुए राजा सिंह कहते है कि इस मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है. यहां पर एक और हैरान कर देने वाली चीज है जो भक्तों को यहां तक खींच लाती है. जंगली देवी मंदिर में सन 1980 से अखंड ज्योति जल रही है. जो भी भक्त अखंड ज्योति जलाने में योगदान देता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जिस भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है उसके बाद अगले भक्त के दिए हुए घी से अखंड ज्योति जलाई जाती है. मंदिर के नियमित दर्शन करने वाले भक्त रामशंकर के मुताबिक प्रतिमा पर चढ़ाए गए जल और नारियल का पानी प्रतिमा के पीछे बनी नाली से होकर गुजरता है. जो भक्त वहां पर ईट रखता है और कुछ दिन बाद वही ईट अपने निर्माणाधीन मकान में लगाता है तो छोटा सा मकान भी बहुत जल्द बड़ा हो जाता है. उन्होंने कहा यह सब माता जी की कृपा से मुमकिन है.

     भक्त किरण के मुताबिक पिछले दस साल से माता के मंदिर में दर्शन के लिए आ रहे हैं. उनकी अनुकम्पा से सभी बिगड़े काम बनते चले जा रहे हैं. ऐसे बहुत से श्रद्धालु हैं जिनकी दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूरी हो रही हैं.

    प्रसिद्ध इतिहासकार रामकृष्ण अवस्थी के मुताबिक इस ताम्रपत्र पर अंकित लिपि इस इस बात की और इशारा करती है कि यह लगभग 1200 वर्ष से अधिक प्राचीन है. यह ताम्रपत्र राजा भोज के समय का है. इस ताम्रपत्र को मंदिर में स्थापित कराया गया था जहां इस वक्त यह विशाल मंदिर बना हुआ है.

मॉ बुद्धा मन्दिर  कानपुर के मूलगंज में स्थित मां बुद्धा देवी मंदिर भी बेहद प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों में से एक है. नवरात्र में इस मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है यह मंदिर गलियों में बसा हुआ है इसके बावजूद दूर-दूर से भक्त इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में माता के चरणों से निकले नीर को आंखों में लगाने से आंखों के सारे रोग दूर हो जाते हैं. वहीं, यह देश का ऐसा इकलौता मंदिर है. जहां पर माता को तरह-तरह की कच्ची सब्जियों का भोग लगाया जाता है.

काली मठिया मंदिर  कानपुर के शास्त्री नगर में स्थित काली मठिया मंदिर भी बेहद प्राचीन और पूजनीय मंदिरों में से एक है. यह काली माता का सबसे बड़ा सिद्ध मंदिर है. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में 41 दिनों तक आरती में शामिल होता है, उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है. नवरात्र में इस मंदिर में बड़ी भीड़ इकट्ठा होती है. यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना है. इस मंदिर को लेकर कहानी है कि एक गाय यहां पर रोज आकर अपना दूध छोड़ देती थी. जब यहां पर खुदाई कराई गई तब यह माता की मूर्ति यहां से निकली. इसके बाद यहां पर माता के मंदिर का निर्माण कराया गया.


मां भवानी के इन 108 नाम जपें और पाएं समृद्धि

-सती, साध्वी, भवप्रीता, भवानी, भवमोचनी, आर्या, दुर्गा, जया, आद्या, त्रिनेत्रा, शूलधारिणी, पिनाकधारिणी, चित्रा, चण्डघण्टा, महातपा :, मन: , बुद्धि : मां दुर्गा का नाम है।

-अहंकारा, चित्तरूपा, चिता, चिति:, सर्वमन्त्रमयी, सत्ता, सत्यानन्दस्वरूपिणी, अनन्ता, भाविनी, भाव्या, भव्या, अभव्या, सदागति:, शाम्भवी, देवमाता, चिन्ता, रत्नप्रिया, सर्वविद्या के नाम से भी मां जानी जाती हैं।

-दक्षकन्या, दक्षयज्ञविनाशिनी, अपर्णा, अनेकवर्णा, पाटला, पाटलावती, पट्टाम्बरपरीधाना, कलमंजीररंजिनी, अमेयविक्रमा, क्रूरा, सुंदरी, सुरसुन्दरी, वनदुर्गा, मातंगी, मतंगमुनिपूजिता, ब्राह्मी, माहेश्वरी भी मां के नाम हैं।

-ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुण्डा , वाराही, लक्ष्मी: , पुरुषाकृति:, विमला, उत्कर्षिणी, ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बुद्धिदा, बहुला, बहुलप्रेमा, सर्ववाहनवाहना, निशुम्भशुम्भहननी भगवती का नाम है।

-महिषासुरमर्दिनी, मधुकैटभहन्त्री, चण्डमुण्डविनाशिनी, सर्वासुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्वशास्त्रमयी, सत्या, सर्वास्त्रधारिणी, अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिणी भगवती का नाम है।

-कुमारी, एककन्या, कैशोरी, युवती, यति:, अप्रौढा, प्रौढा, वृद्धमाता, बलप्रदा, महोदरी, मुक्तकेशी, घोररूपा, महाबला, अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि:, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली नाम भी भगवती दुर्गा का है।

-विष्णुमाया, जलोदरी, शिवदूती, कराली, अनन्ता, परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा व ब्रह्मवादिनी नाम से भी भगवती की स्तुति होती है।

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