खाटूश्याम जी मंदिर पर कैसे शुरू हुई निशान चढ़ाने की परंपरा? झूंझुनू के सूरजगढ़ से है खास कनेक्शन

खाटूश्याम जी मंदिर पर कैसे शुरू हुई निशान चढ़ाने की परंपरा? झूंझुनू के सूरजगढ़ से है खास कनेक्शन

खाटूश्याम जी मंदिर पर कैसे शुरू हुई निशान चढ़ाने की परंपरा? झूंझुनू के सूरजगढ़ से है खास कनेक्शन

Khatu Shyam Nishan Yatra 2025: यह निशान फागुन शुक्ल छठ व सप्तमी के दिन सूरजगढ़ से रवाना होता है और द्वादशी के दिन खाटूश्याम के मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है. इसके अलावा किसी भी ध्वज को खाटूश्याम मंदिर के शीर्ष पर जगह नहीं मिलती है.





राजस्थान में फाल्गुन माह में खाटू श्याम का लक्खी मेला परवान पर है. देश-विदेश से श्रद्धालु खाटू श्याम निशान लेकर बाबा को अर्पित कर रहे हैं. आज हम आपको बताने जा रहे उस निशाना की कहानी जो खाटूधाम के मंदिर के शिखर बंद पर 12 महीने लहरता है. वो निशान जिसका डंका बाबा के खाटूधाम की तरह पूरे विश्व में बजता है. इसके साथ ही हम आपको ऐसे बाबा श्याम के भक्त के बारे में भी बताएंगे जिसने पूरे विश्व में सूरजगढ़ के निशान को ख्याति दिलवाई. इतना ही नहीं, अंग्रेजी हुकूमत के भी छक्के छुड़ा दिए. देखिये ये रिपोर्ट...

खाटू श्याम मंदिर के शिखर पर चढ़ने वाला सूरजगढ़ का निशान हजारों पदयात्रियों के साथ खाटू के लिए रवाना हो गया है. निशान के साथ देश-विदेश के श्रद्धालु भी शामिल हुए हैं. खाटू से सूरजगढ़ का खास रिश्ता है. बात चाहे मुगलों के समय की हो या फिर अंग्रेजों के समय की, जब-जब भी मंदिर पर हमले की बात हो या फिर खाटू में दर्शनों पर में रूकावट की कोशिश की गई हो, सूरजगढ़ के श्याम भक्तों ने सबका मुकाबला किया और दर्शनों को रूकने नहीं दिया. 

पिछले कई वर्षों से लगातार खाटू श्याम जाने वाले और लगातार निशान उठाने वाले किदवई नगर के रहने वाले प्रखर मिश्रा उर्फ टोनी बताते है कि वो और उनकी पूरी भक्तों की टीम पिछले कई वर्षों से खाटू नरेश के दर्शन के लिए जाते हैं और जैसा कि वो बताते हैं कि खाटू श्याम जी सच में हारे का सहारा हैं जब से वो और उनके मित्र श्री खाटू नरेश भगवान जी के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं उनके प्रयासों में लगातार चार चॉद लग रहे है और वहॉ जाने का वो पूरा श्रेय भी खाटू नरेश जी को ही देते है और अगली बार कब जा रहे है पूॅछने पर बोले कि जब तक श्री खाटू नरेश जी बुलाते रहेंगे तब तक जाते रहेंगे।

कैसे शुरू हुई निशान चढ़ाने की परंपरा?

श्याम भगत मोहन लाल इंदौरिया की मानें तो अंग्रेजों के जमाने में बाबा श्याम के दरबार में आस्था के सैलाब को देखकर अंग्रेजी हुकूमत ने खाटू मंदिर में ताला लगा दिया था. तब एक भक्त मंगलाराम निशान लेकर खाटू पहुंचे. अपने गुरु गोर्धनदास का आदेश पाकर उसने बाबा श्याम का नाम लेकर मोर पंख ताले पर मारा तो ताला खुल गया. यह चमत्कार देख अंग्रेजी हुकूमत ने पैर पीछे कर लिए. दरअसल, अंग्रेज बाबा के दर्शन में रूकावट पैदा करवाना चाह रहे थे. लेकिन सूरजगढ़ के श्याम भक्त मंगलाराम ने ऐसा नहीं होने दिया और बाबा की शक्ति से अंग्रेजों के छक्के छुड़वा दिए. माना जाता हैं की सूरजगढ़ निशान में खुद बाबा श्याम चलते हैं. मंदिर कमेटी ने सूरजगढ़ के निशान को बाबा के मुख्य शिखर पर चढ़ाने का निर्णय लिया जो परंपरा आज भी निभाई जा रही है.

सूरजगढ़ के निशान को खाटू के श्याम दरबार में मुख्य शिखर पर चढ़ाया जाता है. यही एकमात्र निशान है जो पूरे वर्ष बाबा के मुख्य शिखर पर लहराता है.

सिर पर सिगड़ी रखकर 152 KM चलती हैं महिलाएं

सूरजगढ़ के इस प्राचीन निशान की मान्यता है कि इस निशान के आगे-आगे महिलाएं अपनी मन्नत साथ लेकर सिर पर सिगड़ी रख चलती हैं. महिलाओं का कहना है कि जो भी बाबा श्याम से मांगतीं हैं, वो उन्हें मिलता है. महिलाएं निशान यात्रा में 152 किलोमीटर तक नाचते-गाते चलती हैं. सिगड़ी बाबा के दरबार में अर्पित की जाती है. पूरे देश में सिर्फ सूरजगढ़ का ही ऐसा निशान होता है, जहां पर महिलाएं अपनी मन्नत पूरी होने पर बाबा श्याम को सिगड़ी अर्पित करती हैं और पूरे रास्ते सिर पर सिगड़ी रखकर पदयात्रा पूरी करती हैं. ये महिलाएं पूरे रास्ते बाबा के भजनों पर नाचते-गाते श्रद्धाभाव के साथ पहुंचती हैं.

निशान यात्रा में शामिल होते हैं देश-विदेश के श्रद्धालु

ऐसे कई चमत्कार और इतिहास सूरजगढ़ के निशान के साथ जुड़े हुए हैं. यही कारण है कि इस निशान में शामिल होने के लिए ना केवल देश, बल्कि देश के बाहर से भी श्यामभक्त सूरजगढ़ पहुंचते हैं. यह निशान फागुन शुक्ल छठ व सप्तमी के दिन सूरजगढ़ से रवाना होता है और द्वादशी के दिन खाटूश्याम के मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है. इसके अलावा किसी भी ध्वज को खाटूश्याम मंदिर के शीर्ष पर जगह नहीं मिलती है.

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